इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग Vs ट्रेडिशनल एडवरटाइजिंग

इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग और ट्रेडिसनल एडवरटाइजिंग दो  स्ट्रेटेजी हैं, जिनका इस्तेमाल किया जाता है. आइए इन दोनों के बीच का अंतर समझते हैं. ट्रेडिशनल एडवरटाइजिंग और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग दो अलग-अलग तरीके हैं

Ekta Singh Updated: September 12, 2024 8:30 AM IST

आज के डिजिटल समय में, ब्रांड्स के सामने अपने प्रोडक्ट या सर्विस को सही तरीके से प्रमोट करने की चुनौती है.  इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग और ट्रेडिशनल एडवरटाइजिंग दो  स्ट्रेटेजी हैं, जिनका इस्तेमाल किया जाता है. आइए इन दोनों के बीच का अंतर समझते हैं. ट्रेडिशनल एडवरटाइजिंग और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग दो अलग-अलग तरीके हैं, जिनसे ब्रांड अपने प्रोडक्ट्स या सर्विस का एड करते हैं. दोनों के अपने-अपने फायदे और चुनौतियां हैं.

1.क्या है ट्रेडिशनल एडवरटाइजिंग

ट्रेडिशनल एडवरटाइजिंग- एक ऐसी मार्केटिंग स्ट्रेटेजी है, जिसमें प्रोडक्ट या सर्विस का एड करने के लिए टेलीविजन, रेडियो, न्यूज पेपर, मैगजिन और आउटडोर एड जैसे मीडियम का इस्तेमाल किया जाता है. यह एक लंबे समय से इस्तेमाल किया जाने वाला एडवरटाइजमेंट का रूप है और आज भी कई ब्रांड्स द्वारा इसका इस्तेमाल किया जाता है. ट्रेडिशनल एडवरटाइजिंग में टेलीविजन, रेडियो, न्यूज पेपर, मैगजीन, होर्डिंग्स और ऐसे कई मीडियम का इस्तेमाल होता है.  एसे  एडवर्टाइजमेंट का इस्तेमाल एक वाइड ऑडियंस तक पहुंचना होता है और ब्रांड अवेयरनेस को बढ़ाना होता है.

प्रॉफिट

लम्बा-चौड़ा पहुंच: एक बड़े ऑडियंस तक पहुंचने की क्षमता.

ब्रांड अवेयरनेस: ब्रांड के नाम और लोगो को अच्छे से पहचानने में मदद करता है.

कंट्रोल: एडवर्टाइजमेंट के मैसेज और प्रेजेंटेशन पर पूरा ध्यान दे.

चैलेंजेज

हाई कॉस्ट: टेलीविजन और प्रिंट एडवर्टाइजमेंट महंगे हो सकते हैं.

लो इफैक्टूनेस: ऑडियंस अक्सर एडवरटाइजमेंट को नज़रअंदाज करते हैं, या उन्हें स्किप कर देते हैं.

लेस टारगेट: आम  दर्शकों तक पहुंचने के वजह से, यह आपके टारगेट ऑडियंस तक सही तरीके से नहीं पहुंच सकता है.

2.इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग

इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग- एक तरह की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी है, जिसमें ब्रांड्स सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर के साथ पार्टनरशिप करते हैं. यह इन्फ्लुएंसर अपने फॉलोवर्स के साथ ब्रांड के प्रोडक्ट या सर्विस का एड करते हैं. इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग में सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर के साथ पार्टनरशिप करना होता है. यह इन्फ्लुएंसर अपने फॉलोअर्स के साथ अपने एक्सपीरियंस, आडियाज और प्रोडक्ट के बारे में शेयर करते हैं.

प्रॉफिट

हाई कोनफिडेंस: इन्फ्लुएंसरों पर उनके फॉलोअर्स का भरोसा होता है, जिससे उनके द्वारा प्रमोट किए गए प्रोडक्ट पर भी विश्वास बढ़ता है.

टारगेट ऑडियंस: इन्फ्लुएंसरों के स्पैसिफीक ऑडियंस होते हैं, जिससे आप अपने टारगेट ऑडियंस तक सही तरीके से पहुंच सकते हैं.

हाई इंगेजमेंट: इन्फ्लुएंसर के पोस्ट पर ज्यादा लाइक्स, कमेंट्स और शेयर होते हैं, जिससे ब्रांड के साथ बातचीत बढ़ती है.

लेस कॉस्ट: छोटे इन्फ्लुएंसर के साथ काम करना दूसरे इन्फ्लुएंसर के मुकाबले कम बजट में हो सकता है.

चैलेंजेज

इन्फ्लुएंसर सिलेक्शन: सही इन्फ्लुएंसर को चुनना बहुत बड़ा टास्क हो सकता है.

मेजरमेंट: इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग के रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) को मापना मुश्किल हो सकता है.

लैक ऑफ कंट्रोल: इन्फ्लुएंसर के पास मैसेज पर पूरी तरह से कंट्रोल नहीं होता है.